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प्रेमम : एक रहस्य! (अंतिम भाग )






वे चारों ही बुलैरिश आर्मी के नकाबपोश लड़ाकों से घिरे हुए थे,  अरुण पहले से ही काफी घायल था और आदित्य भी अरुण के हाथों जबड़ा तुड़वाने के बाद सही हालत में नहीं था। अनि और आशा भी एक काफी लंबी जंग करके आये थे, कुल मिलाकर यह रात उनपर उनकी उम्मीद से भी ज्यादा लंबी और भारी होने वाली थी। इतनी लंबी की शायद इसके बाद कोई एक भी सुबह न देख पाए मगर हौसला अब भी उनके जिस्म में भरा हुआ था, आँखों में मौत के डर का साया कहीं दूर दूर तक नहीं था।

"बचो!" आशा ने अनि को धक्का देते हुए कहा। ऐसे बन्द कमरे में गोली चलाना उनके लिए भी अच्छा नहीं था मगर जानी का आदेश मिलते ही सब बन्दूक ताने तैयार हो गए थे।

"हाँ! हाँ! बच लूंगा ऐसे बीच से धक्का ना दो!" अनि ने मुँह बनाते हुए कहा। इतने अधिक तनावग्रस्त माहौल में भी अनि काफी सामान्य नजर आ रहा था।

"तुम अब से कोई प्लान मत बनाना तो…!" आशा ने अनि को घूरते हुए कहा।

"ठीक है खिचड़ी बना दूंगा, घर चल के खा लेना। तुम्हारी तो फेवरेट है न!" अनि उसकी ओर खिसकते हुए लगभग सटकर बोला।

"तुमसे ये किसने कहा?" आशा ने आँखे तरेरते हुए पूछा।

"अब मुझे क्या पता तुम्हारी क्या फेवरेट है! पर हाँ अगर खाना हो तो बता देना मुझे बस खिचड़ी बनाने आता है।" खीस निपोरते हुए दांतों तले उंगली दबाए अनि शर्म से सिर झुकाते हुए बोला।

"तुम मौत के मुँह में आकर खिचड़ी खिचड़ी कर रहे हो ताज्जुब है, मौत से डर नही लगता तुम्हें!" एक नकाबपोश अनि की कनपटी पर बन्दूक रखते हुए बोला।

"कौन मुझे? मैं तो डर रहा हूँ भईया! बहुत ज्यादा डर रहा हूं। और जब मैं डरता हूँ ना तो मेरी भूख बढ़ जाती है।" अपने पेट पर हाथ फिराते हुए अनि ने कहा।

\\'सच में! तुम्हें क्या लगा मैं डर रहा हूँ! सच्ची में डर रहा हूँ यार! अब मैंने पैंट नहीं पहनी होती तो सूसू कर देता! गंदी सोच, मेरा मतलब जब बच्चा था तब। अभी तो अपुन बहुत बड़ा हो गया है, दरवाजे के सामने झुकना पड़ता है हाँ! ये लंबाई भी एक अभिशाप है मित्रों, मैं तो मांग करता हूँ कि हम जैसों के लिए काम से कम आठ फुट का दरवाजा लगाया जाए!

अरे ये किधर खिसक गया फालतू में! आप लोगों से ही सीखा हूँ, अबे थोड़ी तारीफ करके जाया करो मेरी इधर से, वो नहीं कर सकते तो बुराई ही कर लो! आलसी लोग। हे प्रभु इनका क्या होगा! 

सुनो बात ये है कि अभी अपुन लोग टपकने वाले हैं, उधर यमराज जी टिकट लेकर बैठे हैं हमारा। पर फ़िकर नॉट, इट्स योर लवली बॉय यानी कि मैं हूँ आपका प्यारा, सबका राजदुलारा \\'हनी बनी यानी अनि!\\' हाँ मैं ही हूँ। मैं मन में ऐसे ही बात करता हूँ, अभी हँस नहीं सकता, अरी मोरी मैय्या कहाँ आके फंस गया रे...!

सुनो अब राज की बात बताता हूँ, जो पन्ना अभी अभी मैंने लिया हुआ है वो उसी किताब की आखिरी विधि का है, मगर अब क्या फायदा.. वो साला उल्टा सूर्यास्त ही खाली स्थान निकला और उसकी खाली खोपड़ियां में सबके जान की जानी ने जहर भर दिया था जिसके कारण उसने अपनी ही बेसिट फ्रेंड का टिकट काट दिया। और जब पत्ता गुल, तो खेल चालू। अरे! मेरा मतलब कबड्डी से नहीं था, साला सीरियस बोलो तो भी कोई सीरियस न लेता।

अब तक हमका यही लग रहा था कि सारा खेल के पीछे खाली स्थान की खाली खोपड़ियां लगी है, मगर अब जा के पता चला कि ये सारा खेल उसकी दूर दराज उस साली का था जिसके बारे में वो खुद भी नहीं जानता था।

`नाम है जानी और निकली हमारे जान की दुश्मन!`

साला पूरा का पूरा खेल ही बदल गया, मेघना, आदित्य और बाकी सबको तो हमने पानी तक न डाला था मगर अब समझ आया कांटा काहे चुभ रहा था बार बार.. काहे से कांटे का सौदा हमारे बीच ही उगा हुआ था।

अरे हां! अभी तुम सबको प्रेमम के बारे में जानने का इंटरेस्ट होगा न? मैं सच कहूं तो कसम से एकदम का फालतू राइटर है, मेरे से जलता है क्योंकि अपन को किसी से प्यार व्यार करना नहीं है तो रख दिया ये फालतू सा नाम। तुम लोग सोचे कि कौनो लव स्टोरी लिख रहा है, ई सब इसके बस का काम नहीं है, कोई उम्मीद ना ही रखो तो बेहतर है।

ऐसा कुछ नहीं है! उधर ध्यान न दो ज्यादा, गलती तुम्हारी है ये बिचारा क्या करे! जरूरत से ज्यादा आगे सोचने काहे जाते हो..!

°प्रेमम° जिसका अब तक दुनिया के किसी ग्रन्थ में उल्लेख नहीं किया गया है, केवल इस परग्रही टाइप भाषा की किताब को छोड़कर! जिसका कुछ पन्ना अभी भी मेरे हाथों में ही है। यूं समझ लो ये एक अलग सी दुनिया है जहां द्वार खोलने वाला व्यक्ति उस इंसान को प्राप्त कर सकता है जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार करता हो। सीधी सादी भाषा में कहूँ तो मसूरी के जंगल के बीच छिपा ये स्थान अपने आप में एक अलग दुनिया है, जहां रिचुअल कम्पलीट करने पर उसमें पार्टिसिपेट करने वाले सभी उस चीज को हासिल कर सकते हैं जिससे वो सबसे ज्यादा चाहते हैं। जैसे इस कच्ची कली कचनार टाइप को सारा संसार चाहिए, राज करना है इनको पूरी दुनिया पर! कहां से आते हैं ये लोग, हर चार में एक को यही करना होता है। लेकिन ये है... जानी, जानी! जानी दुश्मन।

मगर इसके रिचुअल का सिस्टम बहुत ही गड़बड़ है, हमको समझ नहीं आया इतना बवाल क्यों। क्योंकि इसमें वही पार्टिसिपेट कर सकता है जिसके पास महावृत चिन्ह हो, वह चिन्ह जो इस प्रेमम की कुंजी है। प्रथम व द्वितीय वृत को खोलने के लिए शारीरिक रूप से विकृत बच्चों की दर्दनाक हत्या, तृतीय चरण यानी सितारा, रक्षा कुंजी है। जहां हजारों प्राचीन योद्धा मूरत रूप में खड़े रहते हैं। यदि उस स्पेशल व्यक्ति के अलावा जिसके पास महावृत चिन्ह न होने के बावजूद अपनी इच्छा से महावृत चक्र के सीमा में सौ घण्टे से अधिक यानी करीब पांच का समय गुजारा हो, उसके छूने से ही वह निष्क्रिय हो सकता है। जो कि निराशा जी ने करके सब निराश कर दिया।

मगर अंतिम चरण में क्या होना था ये पता नहीं! मगर जैसा कि जानी दुश्मन ने बताया, उसका सम्बन्ध उससे होना चाहिए जिसने इस प्रक्रिया को आरम्भ किया। इसके लिए उसने आदित्य को ब्लैंक बनाया, अपने परिवार और प्यार की चाहत में, उन्हें पाने की ख्वाहिश में पागल आदित्य बाकी किसी की आँखों में अपने लिए प्यार देख ही न सका। मुझे इतना पता था कि मेघना और आदित्य दोस्त हैं मगर ऐसे दोस्त! सोचा नहीं था। अब समझ आया बीच में सांप क्यों बना हुआ है महावृत चक्र के क्योंकि मेघना के लिए ये आदित्य भी आस्तीन का सांप निकला साला! खैर वो बहुत बहादुर लड़की थी, उसके बलिदान ने इस चमन चिमटिये को अक्ल दिलाया क्योंकि तभी दुनिया के सपने पर राज लिए मेरा मतलब दुनिया पर राज करने का सपना लिए जानी दुश्मन पधारी! जिसने अपने ही सगे बाप और बहन को मरवा डाला। खैर जाने दो मेरा क्या.. फिलहाल दुनिया बचानी जरूरी है, और इसमें  आदित्य को अपना काम करना होगा, इसे बंद करने की आखिरी कुंजी वही नजर आ रहा है। क्योंकि इन चित्रों के अनुसार केवल सभी प्रक्रियाएं करने वाला व्यक्ति ही इसे बंद कर सकता है।  पर फिलहाल इनसे बच लिया जाए!\\'

"मुझे तो नहीं दिख रहे तुम डरते हुए!" उस नकाबपोश ने उसे बन्दूक की नाल से धकेलते हुए बोला।

"ऐसे अंधेरे में टॉर्च जला के देखोगे तो कैसे दिखूंगा मैं!" अनि किसी छोटे बच्चे की तरह शिकायती लहजे में बोला।

"ये क्या कर रहा है..!" आदित्य को कुछ भी समझ न आ रहा था, वो अपने दिमाग में घूम रहे सवालों से परेशान था। और उन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर था वो मारे या खुद मर जाये।

"ये कुछ भी करते रहता है, तुम तैयार हो?" अरुण ने बिना किसी भाव के पूछा।

"मैं यहां कोई खिचड़ी खाने नहीं आयी!" आशा ने उस नकाबपोश को अनि से दूर करते हुए बोली।

"तुम में से किसी को मौत का डर नहीं?" उनमें से एक नकाबपोश बोल।

"जब सईंया भये कोतवाल हमका डर काहे का!" अनि ने मुँह बिचकाया। "भैया बर्बादी! बर्बाद कर दो सबको!" अनि के इतना कहते ही अरुण के दोनों हाथों में खंजर चमकने लगी।

"अरे एक मेरे लिए भी ले आते न!" अनि उछलते हुए एक ओर के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ।

"तुम्हें क्या लगता है तुम चार मामूली लोग हमारा कुछ बिगाड़ पाओगे?" एक ने अनि पर मुक्के से प्रहार किया जिसे अनि ने बीच में ही रोक लिया।

"मत भूलों इनमें से एक तुम्हारा बाप था और बाकियों ने मिलकर तुम्हारा भर्ता बना दिया है। अगर तुम्हें ये लगता है कि तुमने हमें घेरा है तो बहुत बड़ी गलतफहमी में हो।"

"हमेशा मारपीट? कुछ और भी कर सकते हैं!" आदित्य का हाथ दीवार की एक लीवर पर पड़ा। \\'बस कुछ देर के लिए सांस रोक लो।\\' उसने इशारे से सभी को सांस रोकने को कहा। अगले ही पल वह कमरा किसी द्रवित भारी गैस से भर गई, नकाबपोशों के कदम लड़खड़ाने लगे।

"निकलो यहां से!" आदित्य ने अरुण को खींचते हुए कहा। सभी उस कमरे से निकलकर बाहर आ गए, अचानक आदित्य के पैर ठिठक गए, उसने अनि की आंखो में देखा फिर दुबारा कमरे में जाकर मेघना के मृत शरीर को बाहर ले आया। बाहर आते ही आदित्य ने गेट लॉक कर दिया।

"तुम क्या करना चाहते हो!" आशा ने उससे पूछा।

"सर्वनाश! जिसने मुझसे मेरा सब छीना, उससे उसकी साँसे छीन लूंगा मैं!" एक एक शब्द को चबाते हुए बोला वह। "अगर तुम्हें तुम मासूमों की मौत का जिम्मेदार मैं लगता हूँ तो मुझे सजा देना अरुण, मगर मुझसे भी ज्यादा कुसूर उस जानी का है, जिसे मैं बिल्कुल भी नहीं जानता।" आदित्य ने कहा, अरुण ने कुछ नहीं कहा, वह अब भी हाथों में खंजर लिये हुए था। सभी मैं हॉल में पहुंच गए, आदित्य दोनों तरफ के दो बड़े कमरों को खोल दिया, जो गोला बारूद से भरे पड़े थे।

"उफ्फ्फ…! इतने अधिक मात्रा में बर्बादी का सामान!" आशा हैरानी से चिंहुकी।

"मगर अब ये इन्हें ही बर्बाद करेगा। अरुण ने अपनी छोटी सी गन निकालते हुए बोला।

"रुक जाओ! कुछ हथियारों की जरूरत हमें भी पड़ेगी।" अनि ने अरुण को रोकते हुए कहा।

"नहीं! यहां तुम्हें हर तरफ हथियार मिल जाएंगे, हथियार की तुम चिंता न करो, हां मगर अपनी पसंद की गन्स जरूर ले लो!" आदित्य ने अपने चेहरे पर पट्टी करते हुए कहा।

थोड़ी ही देर में चारों उस पहाड़ी के बाहर थे, गेट ऑटोमैटिकली बन्द होने लगा था, अरुण और आदित्य ने एक साथ कई फायर झोंक दिए, दोनों कमरों के बारूदों में आग पकड़ ली। अगले ही पल वहां भयंकर विस्फोट होने लगे, सभी वहां से उस दिशा में भागने लगे जिधर से अनि और आशा आये हुए थे। चारों तरफ गहरा अंधकार छाया हुआ था, मगर उस पहाड़ी के भीतर हो रहे धमाकों ने कुछ पल के लिए चारों तरफ धीमी रौशनी कर दी थी, चूंकि पहाड़ काफी बड़ा था इसलिए बाहर से धमाके के पटाखे की भांति स्वर और हल्की चिंगारियों से रौशनी आ रही थी।

"आखिर वो कहाँ गयी होगी!" आशा चलते हुए धमाके की ओर देखते हुए कहा।

"मैं जानता हूँ! अब उसे वह चाहिए जिसके दम पर वो सारी दुनिया पर राज कर सके और…!" अनि ने कुछ सोचते हुए कहा।

"और क्या?" आदित्य ने पूछा। उसके कांधे पर मेघना का शरीर था।

"एक सदियों पुरानी सेना! शायद वह अमर हो सकती है।" अनि ने सपाट स्वर में जवाब दिया।

"जल्दी चलो! अगर वो एक बार कामयाब हो गयी तो मुसीबत और बढ़ जाएगी। मेरे खंजर उसके जिस्म की बक्खिया उधेड़ने को बेचैन हो रहे हैं।" अरुण ने तेजी से आगे बढ़ते हुए कहा, उसकी आँखों में सिर्फ क्रूरता दिखाई दे रही थी।

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"हाहाहा….! मेरा बरसो पुराना सपना पूरा हुआ। अब ये सारी दुनिया मेरे कदमो में होगी। मेरे बाप की बंदिशों ने मेरी माँ को मार डाला मगर उनके दिमाग की काफी सारी मेमोरी मुझ में आ जाने के कारण मैं अनगिनत भाषाओं को पढ़ एवं समझ सकती हूँ। आखिर मैंने उसे पा ही लिया जिसके दम पर हम दुनिया पर राज करेंगे माँ!" जानी पागलों की तरह चींखते हुए बोल रही थी। उसके सामने एक विशाल वृक्ष था, जिसके पास से हल्की गुलाबी चमक आ रही थी।

"मैंने तेरी गोद में कभी नहीं खेला माँ! मेरे बाप के पास मेरे लिए टाइम नहीं था। मगर तुम्हारी स्मृतियों ने मुझे पाले रखा, भला तुमने मेरे आंख खुलने से पहले अपनी आंखे बंद कर ली माँ मगर इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार मैं तुमसे करती हूँ। सिर्फ तुमसे! अब ये सारी दुनिया मेरी हुई जानी…! हाहाहाहा..! वैसे तो मैं तुझे ही चुनती माँ मगर एक ही मौका है..! तुझे तो कभी देखा नहीं मगर दुनिया को देखा है, जिसके पास ताक़त है वही इज्जत और प्यार पाता है। हाहाहा… प्रेमम! सारे काम नफरत के करो फिर प्रेम हासिल करो यही इस।दुनिया का उसूल है जानी! अब इस मकसद में जान देने वालों को भी इनाम देने का वक़्त आ गया है।" वह जोर जोर से हँसते हुए बोली।

"जागो प्रेमम! जाग जाओ!" अपनी बाँहो को फैलाते हुए उसने कहा। "दुनिया अपनी नई स्वामिनी का इंतज़ार कर रही है जानी!" उसके दोनों हाथ ऊपर उठते गए, वहां चमक रही गुलाबी तरंगे उसकी ओर बढ़ी। मगर किसी ने उस स्त्रोत पर कई गोलियां बरसा दीं।

"रुक जाओ लड़की! बहुत हुआ तुम्हारा ये दुनिया की स्वामिनी बनने वाला खेल!" अरुण ने उसकी ओर बढ़ते हुए खंजर लहराकर कहा।

"ओह! तो तुम यहाँ तक आ गए?" जानी ने आश्चर्य होते हुए पूछा। "मगर मुझ तक पहुंचने के लिए तुम्हें ये रास्ता पार करना होगा, मौत का रास्ता!" होंठो पर कुटिल मुस्कान सजाए इठलाते हुए वह बोली।

"क्या दीदी! हवा में तीर मार देती हो, आसपास कुछ तो लिया करो जानी!" आशा ने तंज कसते हुए तल्ख स्वर में कहा।

"व्हाट?" जानी का दिमाग घूम गया, माइंस दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही थी।

"अरे देख तो लेती कि हम कितने पास आ गए, माइंस तो पूरा का पूरा जंगल में बिछाकर रखवाया था तुमने!" आदित्य ने कुटिल मुस्कान सजाए बोला, इस वक़्त मेघना का शरीर उसके कंधे पर नहीं था।

"बस बहुत हुआ! मैं तुममें से किसी को नहीं छोड़ूंगी।" जानी ने गुस्से से चींखते हुए कहा।

"जितना चिल्लाना है चिल्ला ले लड़की! अरुण की अदालत में दया नाम की चीज नहीं मिलती, यहां सिर्फ मौत मिलती है, मौत को भी हिलाकर रख देने वाली मौत!" अब तक अरुण उसके काफी करीब जा पहुंचा था।

\\'ये मेरी बुलैरिश आर्मी कहाँ चली गयी?\\' जानी के माथे पर पसीने छूटने लगे। "बस आज की सुबह होने तक जिंदा रह लो तुम लोग कल के बाद सूरज मेरी मर्जी के बगैर कभी नहीं उगेगा। मार डालो इन सबको।" जानी ने जबड़ा भींचते हुए कहा। अचानक वहां सैकड़ो की संख्या में लाइट्स जल उठी, वे सभी माइंस के सर्किल के अंदर छिपे हुए थे।

"ये तो तुम बड़ी गलती कर गयी जानी दुश्मन!" अनि ने होंठो को गोल कर सिटी बजाते हुए कहा। "टूटा फूटा भाई..! तोड़ कर रख दे इन सबको!"

उसी वक़्त उनकी ओर फायरिंग होने लगीं। आदित्य अंधेरे का लाभ लेकर किसी ओर निकल गया था। घने काले अंधेरे में गोलियों को देख पाना सम्भव नहीं था, ऊपर से चारों तरफ चमक रही लाइट्स ने आंखे चौंधिया दी थी। अनि और आशा को ही हुआ था। वे दोनों लाइट्स पर निशाना लगाकर गोलियां दागने लगे थे मगर बुलैरिश आर्मी के लड़ाकों की संख्या उनकी उम्मीद से बहुत ज्यादा थी।

अनि और आशा एक दूसरे से पीठ सटाकर चारों तरफ घूमते हुए फायरिंग करने लगे। मगर जल्द ही उनकी गोलियां खत्म हो जानी तय थी, अनि और आशा अब सभी से दूर उन जालिम नकाबपोशों से घिरने वाले थे।

◆◆◆◆

अचानक सैकड़ो नकाबपोशों के आ जाने से जानी को कहीं भागने का मौका मिल गया, अरुण तेजी से उस दिशा में बढ़ा, एक गोली उसकी ओर बढ़ी जिसको उसने बढ़ी खूबसूरती से खंजर को आड़े लगाते हुए रोक दिया। अंधेरे में हजारों गोलियों से बच पाना सम्भव नहीं था। अरुण ने अपनी गन निकाली और एक हाथ में पकड़ते हुए एक के बाद एक सभी लाइट्स फोड़ता गया। अंधेरा होने के कारण अब उनमें से भी कोई अरुण को नहीं पहचान सकता था। अरुण तेजी से दौड़ता हुआ हवा में लहराया, एक नकाबपोश ने उसे रोकने की कोशिश की मगर अरुण का खंजर उसके सीने में घुस चुका था। अरुण ने खंजर को ऊपर की ओर खींच दिया, वह नकाबपोश किसी बकरे की तरह हलाल हो गया।

एक ने अरुण के पीठ पर जोरदार किक मारा, अरुण हल्का सा आगे झुका तभी दूसरी ओर वाले नकाबपोश ने गोली चला दी, एक नकाबपोश बिना किसी मेहनत के निबट गया। अरुण उन नकाबपोशों किसी भूखे भेड़िये की तरह झपट पड़ा था, जो भी उसके रास्ते में आया वह कटकर जमीन पर गिर गया। अरुण अब थकने लगा था मगर वे लोग कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

इन सब में आदित्य जाने कहाँ चला गया था इसका किसी को कोई ध्यान तक न रहा, अरुण किसी पागल वहसी दरिंदे की भांति उन दरिंदो को यमराज के द्वार पहुंचाए जा रहा था।

◆◆◆◆

इसी वक्त!

आदित्य मेघना को कंधे पर लिए बड़ी तेजी से लंबे डग भरते, पहाड़ी से उतरते हुए एक ओर चला जा रहा था, थोड़ी ही देर बाद पास से ही पानी की बूंदे टपकने की आवाज सुनाई देने लगी।

"एक पल को मुझे लगा हमारा प्लान फ्लॉप हो गया!" आदित्य ने राहत की सांस लेते हुए कहा, अब तक वह उस कुंड के पास आ चुका था।

"ऐसा कुछ नहीं होगा जानी! यहां एक नहीं दो दो मास्टरमाइंड हैं। वैसे ड्रामा मस्त करते हो जानी!" जानी उसके पीछे से निकलकर आती हुई बोली।

"मगर इसके बाद मुझे मेरा परिवार और प्यार मिल जाएगा इसकी क्या गारंटी है?" आदित्य ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

"गारन्टी तो अपने जान की भी नहीं है जानेमन! चीजे तो बस उम्मीद पर ही मिल पाती हैं।" जानी ने उसे धकियाते हुए कहा। अब तक वो दोनों उस कुंड के पास पहुंच चुके थे। एक ओर से अनेकों वृक्षों के झुंड से घिरा कुंड का जल हल्के नीले रंग में चमक रहा था, जिसके चमक के प्रभाव से उसके किनारें भी जगमगा रहे थे।

"ये क्या है?" आदित्य ने पूछा।

"इस दुनिया पर राज करने का परमानेंट मंत्र! याद रखना इसका शरीर इस पानी को टच न करने पाए।" जानी ने उसे सावधान करते हुए बोली।

"हाँ! मुझे याद है। अब बस आखिरी काम और सारी दुनिया हमारी! और मुझे मेरा परिवार, मेरा प्यार मिल जायेगा।" आदित्य के होंठो पर एक स्थिर मगर कुटिल मुस्कान थी।

\\'बस एक बार तुझसे मेरा काम तो निकल जाए जानी! फिर दिखाउंगी कि दुनिया किसकी होगी।\\' जानी ने खुद से बुदबुदाया, आदित्य ने मेघना के शरीर को वहीं पास में लिटा दिया।

■■■

अनि और आशा, बुलैरिश आर्मी से बुरी तरह से घिरे हुए थे, उनकी सभी बन्दूकों की गोलियां भी खत्म हो चुकी थी, ऐसे में गोलियों की बरसात से बच पाना लगभग असंभव था।

"लेट जाओ!" अनि को खींचते हुए आशा ने धीरे से कहा। मगर उसके कहने के ठीक उलट अनि ने बैक फ्लिप लिया  हवा में लहराते हुए, और जबरदस्त टर्न लेते हुए एक नकाबपोश के मुँह पर सुपर किक मारी, जिससे उसका जबड़ा टूट गया।

"ऐसे तुम इन सबसे नहीं लड़ सकते, अगर पूरी तरह थक गए तो सोच लो…!" आशा ने उसे हिदायत देते हुए कहा।

"सबसे किसे लड़ना है, हमें तो बस यहां से निकलना है।" तभी उनके सामने हल्की सी लाइट जली जो अगले ही पल बुझ गयी, अगले ही पल वह लाइट नकाबपोशों की भीड़ को चीरते हुए अनि के पास आ गयी।

"आपके कमांड के अनुसार माइंस को सेटअप करने में थोड़ा वक्त लगा सर! अब यहां से चलिए।" क्रेकर की मशीनी आवाज उभरी।

अनि ने क्रेकर के टँकी के पास से एक छोटा सा बोतलनुमा चीज निकाला जिसमें कोई द्रव भरा हुआ था।
"चलिए मिस निराशा! इस बार निराश नहीं कर रहे हम आपको।" कहते हुए अनि ने उस खींच लिया और उस बोतल को अपने पीछे की ओर फेंक दिया।

"इससे क्या होगा?" आशा ने पूछा।

"खुद ही देख लो, ये एक खास केमिकल है जो वातावरण के तापमान को अचानक से बहुत अधिक बढ़ा देता है, इतनी अधिक गर्मी होगी की ये सब अंधों की तरह अंधाधुंध भागेंगे फिर इनकी मौत इनके बिछाए जाल में ही होगी।" अनि ने हंसते हुए कहा, वहां से अरुण लड़ते हुए दिखाई देने कगा, अनि उसकी ओर बढ़ चला।

अरुण के आसपास चारो तरफ लाशें ही लाशें बिछी हुई थी, उन लाशों के कट्स को देखकर अरुण की बर्बरता का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था।

"हे भोलेशंकर! ये तो तांडव मचा रखा है।" अनि ने लाशों को गौर से देखते हुए कहा।

"उफ्फ्फ! कोई इतनी घिनौनी हत्या कैसे कर सकता है!" आशा ने अपने हाथों से मुँह को ढंकते हुए कहा।

"वो मिस्टर बर्बादी हैं निराशा जी!" अनि ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। "चलो अब! फालतू टाइम बर्बाद किये तो मैन प्लान हाथ से निकल जायेगा।" अनि ने चिल्लाते हुए कहा, अरुण दौड़ता हुआ उसकी ओर भागा। तीनो ही माइंस के उस जाल को पार कर चुके थे।

"वो तो अच्छा हुआ मैं क्रेकर को यही छोड़कर गया था, इसने माइंस बिछाने की रूपरेखा का तलाक करा दिया।" अनि ने हंसते हुए कहा। इसी के साथ एक के बाद एक ब्लास्ट होने की आवाज आने लगी। घने अंधेरे में में जैसे दिवाली आ गई थी।
"ये एक टाइप की स्पेशल माइंस थी, जो आदमकद पैरों से दबकर ही एक्टिव होती, समझ नहीं आता इन जैसे नमूनों के पास ऐसा हथियार कहाँ से आया!"

"मेरी मेमोरी में ऐसी कोई डेटा फ़ाइल नहीं जिसमें इससे रिलेटेड हेल्प मिल सके सर!" क्रेकर ने मशीनी स्वर में कहा।

"क्रेकर तुम निराशा जी को लेकर बाहर जाओ! सुबह अब होने ही वाली है, अगर अब देरी हुई तो समझो ज़िंदगी भर जानी दुश्मन के घर चक्की पीसने पड़ेंगे।" अनि ने हाथों को लहराते हुए क्रेकर को जाने का इशारा किया।

"क्या?" आशा ने मुँह बनाया।

"तुम बाहर वैट करो! क्रेकर हमें लेने जरूर आना।" अनि ने मुस्कुराते हुए कहा। "चलो अब तुम्हारे प्रतिशोध को ठंडा करने का दिन है, मेरा मतलब रात है।"

"चलो!" अरुण ने बिना उसकी ओर देखे कहा। दोनो बड़ी तेजी से दौड़ते हुए सामने की पहाड़ी चढ़ने लगें, पहाड़ को पार करने के थोड़ी देर बाद ही उन्हें पास से ही पानी के टपकने की आवाज सुनाई देने लगी।

■■■

"करो!" जानी ने आदित्य को आदेश दिया।

"बिल्कुल कर रहा हूँ!" कहते हुए आदित्य पानी में उतर गया, उसके जख्म भरने लगें।

"तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो? अगर सुबह हो गयी तो..!" कहते हुए जानी ने अपनी बन्दूक निकालकर आदित्य पर तान दिया।

"बस इसका…!" कहने के साथ आदित्य ने मेघना को उसी पानी में खींच लिया, इसी के साथ ही सूर्य की पहली किरण धरती तक पहुंची। जानी आदित्य की इस अप्रत्याशित हरकत से हैरान रह गयी, उसने मेघना पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं मगर उन सारी गोलियों को आदित्य ने अपने सीने पर ले लिया।

"तुमने ऐसा क्यों किया.. तुम्हें वो मिलने वाला था जो तुम चाहते थे..!" जानी जोर से चिल्लाई। "तुमने सब तबाह कर दिया। आखिर क्यों?"

"ग..गलत कह रही हो जानी! तुमने मेरा सब तबाह कर दिया, देखो मुझे क्या से क्या बना दिया। मैं तुम्हारें साथ इसलिए था क्योंकि मेरे पास ऐसा कोई नहीं था जिससे मैं प्यार करता था पर अब है।  ये.. मेरी दोस्त मेघना! को बदकिस्मती से मुझ से प्यार कर बैठी और मैं बाकियों के लिए यूं ही पागल रहा, इसकी आंखों में अपने लिए इस प्यार को कभी देख ही नहीं सका। मैं जानता हूं मैंने ऐसे पापकर्म किए हैं जिन की कोई माफी नहीं है। मैंने अपनी सबसे अच्छी दोस्त का प्यार, विश्वास यकीन सब तोड़ दिया। पर मेरे पास एक आखिर मौका है, मैं इसे किसी हाल में खाली नहीं जाने दूंगा।"  आदित्य बड़ी दृढ़ता से चीखता हुआ बोला, उसकी आंखो से आंसू बह रहे थे। उसने मेघना के हाथ को पकड़कर उसे उस पानी में डूबो दिया।  "इस प्रेमम से मेरी बस यही ख्वाहिश है कि मेघना को फिर वापिस लौटा दें।" 

"तुम विश कैसे मांग सकते हो! मगर अब विश मांग ही चुके हो तो मैं उसे सफल नहीं होने दूंगी। तेरी इस इकलौती चाहने वाली को भी मरना होगा।" जानी ने पागलों की तरह चींखते हुए कहा।

"धांय!" एक गोली उसके दाहिने हाथ की कलाई में से पार हो गयी। उसकी बन्दूक नीचे जा गिरी। दूसरी ओर से अनि और अरुण चले आ रहे थे।

"माफ करना आदित्य हमें थोड़ा लेट हो गया।" अनि ने थोड़ा अफसोस जताते हुए कहा।

"म...मुझे माफ करना अनि! अरुण! मेघना का ख...ख्याल रखना।" आदित्य की साँसे अटकने लगी थी। "मुझे नहीं पता कि मैं क्या कहूँ पर थ...थैंक यू अ...अनि! मैं तुम्हारा बहुत शुक्रगुजार हूं। तुम्हारी वजह से कम से कम एक गलती तो सुधार सका ह….हूँ।" उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी थी, सांसों का डोर टूटने लगी। वह पानी की सतह पर बेजान सा तैरने लगा। इसी के साथ ही मेघना के शरीर में थोड़ी सी हलचल हुई, उसके जख्म भरने लगें।

"तुमने मेरे बरसो के सपने को तोड़ दिया! नहीं छोड़ूंगी, मैं तुममें से किसी को नहीं छोड़ूंगी। ये सारी दुनिया मेरी है सिर्फ मेरी!" जानी पागलों की तरह चीखने लगी।

"हाँ! दुनिया को तुम्हारी प्लेट में छोड़ के कौन गया था?" अनि ने तंज कसते हुए कहा।

"मैं तुम सबकी खून पी जाऊंगी।" कहते हुए वह अनि पर झपट पड़ी, अनि अपने स्थान से हट गया। जानी अरुण से जा टकराई, उसके खून से सने हाथों में खंजर देखकर वह पीछे हटने लगी।

"बर्बादी भैया की बड़ी तमन्ना थी कि वो उन मासूमों की जान लेने वाले हत्यारे को मौत से भी बुरी मौत मारेंगे! तो क्या आप अब भी अपने फैसले पर अटल हैं।" अनि ने उसको पीछे हटते देखकर कहा, मगर अरुण ने कोई जवाब नहीं दिया।

"सामने एक लड़की है यार!" अनि ने मुँह बिचकाते हुए कहा।

"कोई भी हत्यारा स्त्री या पुरूष या किसी का रिश्तेदार नहीं होता! किसी मासूम की बेदर्दी से हत्या करने वाला सिर्फ हत्यारा ही होता है..! मगर ये विरोध नहीं कर सकती..!" अरुण ने अपने खंजर नीचे रख दिये।

"इ…एह!" अपने बाएँ हाथ से बन्दूक उठाते हुए उसने अरुण पर फायर कर दिया, इससे पहले अनि या अरुण कुछ करते उसकी पीठ में कई गोलियां धँसती चली गयी।

"मुझे पता था लड़की को मारने के लिए एक लड़की की ही जरूरत होती है, ये काम तुम मर्दों से नहीं होने वाला।" आशा ने अपनी बन्दूक के नाल से निकल रहे धुएं को फूंकते हुए कहा।

"तुम यहाँ? क्रेकर कहाँ है?" अनि ने पूछा।

"आपका तोड़ू फोड़ू हाजिर है सर!" क्रेकर ने अनि के अंदाज में कहा, सब हंस पड़े।

"आदित्य? इसे क्या हुआ है मैं यहां क्या कर रही हूँ।" मेघना ने आदित्य के शरीर को कुंड से बाहर खींचते हुए कहा, उसकी पोशाक कई जगह फटी हुई नजर आ रही थी मगर जख्म अब पूरी तरह भर चुके थे।

"लंबी कहानी है, आराम से सुनना। बाकी जानती हो ही!" आशा ने उसका हाथ पकड़कर बाहर निकालते हुए कहा।

चारों तरफ ऊजाला फैला हुआ था, काले जंगल का काला साया मिट चुका था, \\'प्रेमम\\' शब्द अब केवल प्यार के लिए याद किया जाने वाला था किसी के मौत के लिए नहीं। अनि ने अपनी जेब में रखे पन्नो को जला दिया। यह देखते ही आशा उसकी ओर दौड़ी, मगर वह कागज बड़ी तेजी से से जलकर राख हो गया, और उसका राख जानी के मृत शरीर पर गिरने लगा।

"ये तुमने क्या किया बेवकूफ!" आशा ने चिल्लाते हुए पूछा।

"अमर कर दिया! अब से इस दुनिया में कोई प्रेमम नहीं है। इसके बिना तुम्हारे पास रखी किताब बेकार है, क्योंकि उसके सभी इंपॉर्टेंट पन्ने मैंने तभी निकाल लिए थे।"  अनि ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा।

\\'इस लड़के को समझ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है यार, कब क्या करे पता नहीं!" आशा बस उसके चेहरे को देखती रही।

अरुण ने आदित्य के मृत शरीर को अपने कंधें पर उठा लिया, आशा, मेघना को संभालने आगे बढ़ी पर मेघना अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। फिर वे सभी जानी की लाश को वही छोड़कर वहां से आगे बढ़ गए। घने वृक्षों के झुंड के पास उस कुंड से अब भी पानी की बूंदे टपकने की आवाजें आ रही थीं।

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लगभग बारह घण्टे बाद!

शाम को छः बजे!

अनि, अरुण, मेघना, आशा एक ढाबे पर बैठे हुए थे। पियूषा भी देहरादून से मसूरी आने के लिए निकल चुकी थी क्योंकि अब कर्फ़्यू हट चुका था।

देहरादून पुलिस ने आदित्य के बलिदान के लिए उसे सम्मानित करने का फैसला लिया और मेघना के बयान के अनुसार इंस्पेक्टर अरुण की देशभक्ति से प्रभावित होकर कमिश्नर ने उसे पुनः स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त कर दिया गया।

ये वही ढाबा था जहां अनि ने कई दिन पहले भी खाया हुआ था, वे चारों कोने की सीट पर बैठे हुए थे।

"पता है! आज वही दिन है जिस दिन सिया की हत्या हुई थी। आदित्य भी इसी तारीख को दुनिया से विदा हो गया।" मेघना ने भावुक स्वर में कहा, उसकी आँखों में आंसू थे। बाकी सब चुपचाप से उसकी ओर देखते रहे, ढाबे में लगी उस टीवी में आज की ताजा खबरें चल रही थीं। आशा, मेघना की पीठ सहलाते हुए उसे सहानुभूति देने लगी, यह मेघना धीरे से मुस्कुरा दी।

"तुमने ये कैसे जाना कि उस जल कुंड में ही प्रेमम का मुख्य स्रोत है।" काफी देर से फैली खामोशी को तोड़ते हुए अरुण ने मुद्दा बदलते हुए पूछा।

"तुम्हारी वजह से!" अनि ने कहा।

"मुझसे?" अरुण ने उसे घूरकर देखते हुए कहा।

"याद करो, जब तुम उस जलकुंड में गिरे थे तो तुम्हारा व्यवहार थोड़ी देर के लिए बदल गया था, और तुम्हारे घाव भी काफी यहां तक भर चुके थे, यही नहीं उसके बाद तुमने मेरी बात सुनी और मेरा प्लान सुना और अमल भी किया। ये सब कमाल उसी जलकुंड का था, जो उस वक्त प्रेमम महावृत के ओपन होने के कारण थोड़ा सा प्रभावी हो चुका था, जबकि आज ये अपनी चरम पर था, प्रेमम इसी लिए था, जिससे तुम सबसे ज्यादा चाहते हो, उस जल में जाकर उसे पाने विश मांगने पर वह तुम्हें उस चीज को देता, पर इसके लिए मांगने वाले के शरीर पर महावृत्त चिन्ह बना होना आवश्यक है।"

"तो तुम बताओ निराशा जी, तुम्हें आदित्य के बारे में सब कैसे पता चला?" अनि ने आशा से पूछा।

"कुछ चीजें राज ही रहें तो अच्छी लगती हैं विरुद्ध जी! ये सब नाइटिंगेल° का कमाल था!"  आशा ने धीमी हँसी हँसते हुए कहा।

"हद है! और कितने लोग हैं यहाँ ये भी बता दो!"  अनि ने माथा पीटते हुए कहा।

"जो भी हुआ कम से कम सब ठीक तो हो गया! नरेश जी और उनकी बेटी भी सलामत हैं और आज वे आदित्य को सम्मानित करने पहुँचे। मेरे लिए इतना कुछ करने थैंक यू!" मेघना ने कहा। उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे।

"कौन सोच सकता था कि इसका अंत ऐसे होगा!" अरुण में पानी पीते हुए कहा।

"जानता हूँ आपका दुःख बर्बादी भैया। लेकिन अब से आप दुबारा ड्यूटी पर हैं और जब तक आप लोग जैसे ईमानदार पुलिस वाले इस देश में हैं, देशवासी सुरक्षित हैं।" अनि ने मुस्कुराते हुए कहा। अरुण बस मुस्कुराकर रह गया।

"एक डोसा और प्लीज!" अनि ने हाथ उठाते हुए कहा। सब उसकी तरफ देखने लगे।

"अरे हमका ऐसे नजर न लगाओ जी, बहुत पईसा है हमारे पप्पा जी के पास..!" मुँह बनाते हुए अनि ने कहा।

"सॉरी विरुद्ध जी अब हमको जाना पड़ेगा।" ढाबे के बाहर पियूषा को खड़ी देखते ही आशा उठते हुए बोली। अनि ने कुछ नहीं कहा। "फिर मिलते हैं!"

"थैंक्स नाइटिंगेल!" वह पियूषा के कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए बोली। बदले में पियूषा भी धीमे से मुस्कुरा दी।

"बाये! फिर मिलते हैं!" आशा ने हाथ हिलाते हुए कहा, सभी ने हाथ हिलाते हुए उसे विदा किया मगर अनि खाने में मग्न रहा।

"ओये घोंचू? मुझे वहां छोड़ के इसके साथ घूम रहा था?" पियूषा ने अनि को कुहनी से मारते हुए कहा।

"अरे नहीं! आ जा खाने बैठ!" अनि ने अरुण की ओर सटते हुए कहा, यह देख मेघना धीमे से हंस पड़ी।

"मैं खा चुकी हूं भुक्खड़! आज की रिटर्न टिकट निकलवाई है अंकल ने हमारी! अब चल जल्दी।" पियूषा उसे खींचते हुए बोली। "आप लोग भी इसके साथ हो?" पियूषा ने अरुण और मेघना से पूछा।

"अरे नहीं! बिल्कुल नहीं हम तो जसे जानते भी नहीं! आप ले जाओ इसे।" दोनों ने हंसते हुए एक ही स्वर में कहा।

"अब मुझे भी जाना होगा, पापा आ रहे हैं, थोड़ा टाइम उनके साथ रहूंगी तो अच्छा लगेगा।" मेघना ने भी उठते हुए कहा।

"हाँ! अब मुझे भी जाना ही होगा, कहीं कोई दुर्घटना मेरा इंतज़ार कर रही होगी। पर इससे पहले मैं उससे मिलने जरूर जाऊँगा। अब मुझे मेरी हक़ीक़त का सामना करना ही होगा। क्या पता मैं अपने अतीत का सामना कर पाऊंगा या नहीं! पता नहीं यह सब खत्म हुआ या नहीं! पर मैं एक कोशिश जरूर करूंगा। " मन में दृढ़ संकल्प लेकर मुस्कुराते हुए अरुण भी उठ खड़ा हुआ, उसके चेहरे पर आत्मविश्वास से भरा संतोष नजर आ रहा था, मगर आंखें अब भी उलझन से भरी थी।

"वेटर भैया! ये पैसे ले लो! पिछले वाले का भी हिसाब है, थोड़ा ज्यादा हो सकता है पर कम बिल्कुल नहीं!" अनि चिल्लाते हुए वहां पर पैसे रखकर वहां से बाहर निकला। पियूषा उसके हाथ को पकड़कर बाहर की कर खींचे जा रही थी।  "थोड़ा रहम तो करो मिस प्याऊ जी! उफ्फ्फ बहुत थका हुआ हूँ।"

"जा के फ्लाइट में सोना! नौटंकी कहीं का। चल जल्दी..!" पियूषा ने उसे धक्का देकर वहां से बाहर निकालते हुए कहा। उन दोनों के निकलने साथ ही अरुण और मेघना भी बाहर निकल गए।

"और मेरी बाइक?" अनि ने पूछा।

"कैसी बाइक?" पियूषा ने उसे आँखे दिखाते हुए कहा। क्रेकर वहां आसपास दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहा था, अनि समझ गया कि उसका काम होते ही वो जा चुका था।

"ऊप्स चलो चलें!" कहते हुए अनि ने टैक्सी रुकवाई, और दोनों दोस्त निकल गए वापस.. अपने सफर पर। अरुण और मेघना भी अपने अपने सफर पर निकल चुके थे।



समाप्त…




"लिखने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, काफी समय भी लगता है इसलिए आप सभी से निवेदन है कि थोड़ा समय निकालकर प्रत्येक पार्ट पर आपको जैसा लगा वैसी समीक्षा/रिव्यू अवश्य कमेंट करें! और कृपया नाइस और बढ़िया से आगे बढ़कर चार शब्द बोलें, हमारी मेहनत का परिणाम आपकी समीक्षाएं ही हैं।"

आपकी समीक्षाओं के इंतजार में..

मैं: समीक्षाओं का भूखा एक अदना सा लेखक!







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अच्छी कहानी थी।👌

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